हठ- एक सर्वनाश
जब पांडव लौट आए वन से,
भय जाग गया शत्रु मन में,
जिनकी ताकत ना समझ सके,
वो तो बलशाली अधिक दिखे।
अब बहुत हो गया अन्याय,
सह के बलिष्ठ पांडव आए।
श्री कृष्ण चले कौरव के द्वार,
दुर्योधन की बुद्धि संवार,
करने को आर्यावर्त कल्याण,
देखो स्वयं आए भगवान,
हरि ने काफी प्रयास किया,
दुर्योधन को विश्वास दिया।
बस पांच ग्राम देदो युवराज,
बाकी सब रखो अपने ताज,
हम वहीं बसेरा कर लेंगे,
फिर बात नहीं बढ़ने देंगे,
पर दुर्योधन था हठी बड़ा,
खुद था विनाश के संग खड़ा।
बोला हे ग्वाले सुनो जड़ा,
देखो स्थान हो कहां खड़ा,
सुई नोक बराबर की भी धरा,
पांडव को ना देने वाला,
मुझको जो डराने आए हो,
भय मुझे दिखाने आए हो।
तुम आए करने मुझको संवार,
अब चलो जड़ा मेरे कारागार,
पापी ने उठा लिया जंजीर,
नाश किया निज का तकदीर,
बढ़ा लिए जंजीर प्रभु तक,
कहो कौन समझाए इसे अब।
कुपित हो गए तब नारायण,
विराट रूप में आए भगवन,
दुर्योधन तुझे खूब चेताया,
सर्वनाश आगाह बताया,
पर तेरे सिर काल चढ़ा है,
मुझको तू बांधने चला है।
मेरी बात भी ना तू माना,
मुझको भी तू ना पहचाना,
लौट रहा हूं तेरे दर से,
पर तु भी ये ध्यान से सुन ले,
ये आखिरी थी मेरी विनती,
शुरू तू कर दे उल्टी गिनती।
उस कुरुक्षेत्र कि रणभूमि में,
लाखों स्त्री की चूड़ी से,
ऐसा प्रलय भी आएगा,
त्राहि त्राहि जब मच जाएगा,
नभ से विष बरसेगा चहु ओर,
निर्दोष करे रक्षा की शोर।
सब पाप तुझी पे आएगा,
जब सर्वनाश हो जाएगा,
हिंसा का तू दोषी होगा,
इस रण मे अब जो भी होगा,
सबका होगा तू जिम्मेदार,
ये कह गायब हो गए अवतार।
फिर शुरू हुआ महाभीषण रण,
क्षतिग्रस्त हुए लाखों जीवन,
निज मृत्यु का आभास हुआ,
तब पापी को एहसास हुआ,
जब स्वयं प्रभु को ठुकराया,
तब हठ- एक सर्वनाश हुआ।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"