जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा

जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा
बाल मेरे भी पक जाएंगे
हड्डी–पसली थक जाएंगे
जिम्मेदारियों से आजादी
पर ना लुफ्त उठा पाऊंगा?
जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा।

बिना नमक और बिन चीनी के
सादा खाना खाना होगा
गर औलाद नालायक हुई तो
वह भी स्वयं बनाना होगा
घास फूस जैसा बेस्वाद
खाना मैं भी खाऊंगा?
जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा।

छोटे बच्चों की मस्ती में
अपनी मस्ती खोजूंगा
अपना बचपन सोच सोचकर 
कुछ पल खातिर रो दूंगा
हो सका अगर कुछ देर सही
मैं फिर बच्चा बन जाऊंगा
जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा।

फिर धीरे धीरे उम्र बढ़ेगी
नजरों में कमजोरी होगी
जीवन के उस अंतिम क्षण में
दिक्कत थोड़ी–थोड़ी होगी
कान से बहरा हुआ अगर
सबसे ऊंचा बुलवाऊंगा 
जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा।

फिर वो रात मेरी आएगी
कल के काफी काम रखूंगा
ये करना है, वो करना है
कब कैसे करना सोचूंगा
एक आह भरूंगा, थका हुआ
सब मन में रख सो जाऊंगा
“फिर कभी नहीं उठ पाऊंगा”
जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा।


               – आदित्य कुमार 
                     (बाल कवि)


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