कर्ण को अधर्म क्यों मिला?

शव पड़े वहां जहां तक देख सकता नेत्र है
आज मेरी कविता का आरम्भ कुरुक्षेत्र है।

धर्म और अधर्म के असंख्य सूरमा मरे
पर अभी भी महारथी कुछ युद्ध में है लड़ रहे

कुल मिलाके यूं कहे तो युद्ध अब भी जारी है
और अबकी कर्ण अर्जुन के समर की बारी है

कर्ण जानता है उसकी मौत निश्चित है
कृष्ण सारथी है जिसके उसके पक्ष जीत है

युद्ध हुआ और विधाता खेल अपना रच गया
अंगराज कर्ण का वाहन धरा में फंस गया

और फिर न जाने क्या विधाता का ये सूत्र था
एक निहत्थे पे धनुष उठा क्यों कुंतीपुत्र का?

ये जो प्रश्न आज हम सभी के मन में आ रहा
ठीक यही प्रश्न कर्ण कृष्ण से है पूछता

कर्ण के सवालों का जवाब देने के लिए
वासुदेव कृष्ण स्वयं काल को है रोकते

और अबकि दृश्य 
कृष्ण-कर्ण का संवाद है
मुख्य रूप से यही से
कविता की शुरुआत है

कर्ण पूछता है “प्रभु क्यों किया ये छल कहो?”
क्यों रचे षड्यंत्र मुझको भेंट दिया काल को

तुम तो बड़े धर्म का ज्ञान सिखाते थे न
आज कुरूक्षेत्र में ज्ञान वो गया कहां?

हे त्रिलोकीनाथ क्या तुम्हे जड़ा भी सुध नहीं
एक निहत्थे पे वार हत्या है वध नहीं

अंगराज कर्ण के आंखों में आक्रोश है
पूछता है प्रश्न आखिरी “मेरा क्या दोष है?” 

कृष्ण जो खड़े अभी तक अधर अपनी जोड़कर
कहते है कर्ण को चुप्पी अपनी तोड़कर

कृष्ण बोलते है “कर्ण याद है क्या वो सभा?”
जब भरे दरबार में था द्रौपदी का चीर हरा 

चीख द्रौपदी की सुनी सारे आर्य प्रांत ने 
अंगराज कर्ण वहां आप भी तो शांत थे

देखकर अधर्म न विरोध भी अधर्म है
और कुकर्मी का साथ देना भी कुकर्म है

आप जो विरोध करते उस सभा में पाप का
आज हाल ये न होता अंगराज आपका

इतना कहके चक्रधारी वाणी अपनी रोक गए 
कर्ण फिर से वासुदेव कृष्ण जी को टोक गए

बोले कर्ण “हे प्रभु प्रश्न एक गूढ़ है”
पांडव क्यों देवता और हम असुर है?

किसने अपना राज पाठ दांव पे लगाया था 
किसने द्रौपदी के नाम पे पासा चलाया था

मैं यदि था मौन तो मुझे दिए हो मृत्युदंड 
और स्वयं क्यों चले गए कहो पांडव के संग

उस सभा में द्रौपदी के वस्त्र खींच रहे थे जब 
पांडु पुत्र भी तो कृष्ण चुप खड़े वहां थे सब 

धर्मराज जो यदि विरोध करते एक बार 
फिर भला अधर्म करदे किसकी इतनी थी मजाल 

कौन था युधिष्ठिर से ज्यादा धर्म जानता 
जिसकी नीतियों को स्वयं देवता भी मानता

एक बार जो यदि गांडीव उठाता अर्जुन 
उसको रोक पाते खुद न इंद्र सूर्य या वरुण 

किस में था सामर्थ्य इतना कौन इतना वीर था 
सामना जो करता स्वयं अर्जुन के तीर का 

एक बार भीम का गदा यदि गरजता तो 
बाकी दोनों भाइयों का भी कृपाण सजता तो 

किसकी अस्थियों में इतना बल था इंद्रप्रस्थ में 
भीम की गदा का वार कौन वीर सह सके

पांच भाई मौन थे पांचों को धर्मी गढ़ दिया
एक मैं जो शांत था तो सारा दोष मढ़ दिया 

खैर ये तुम्हारी लीला जैसा चाहा रच दिया
एक मुझको अस्त बाकी पांच को उदित किया

इतना कहके अंगराज कर्ण शांत हो गए 
बन गए अतीत वो सदा सदा को सो गए 

पर है वो अतीत आज भी सवाल पूछता 
पांडवों को धर्म कर्ण को अधर्म क्यों मिला..

              – आदित्य कुमार 
                    (बाल कवि)

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