तू युद्ध कर
महा समर में उतर गए तो दोष क्या निर्दोष क्या
है युद्ध में सब एक ही लड़ने में फिर अफसोस क्या?
निर्दोष है कुछ गर वहां निर्दोष तो अपने भी थे
उनकी भी क्या गलती थी जिनके नाम की कफ़ने बिके
रण क्षेत्र में मत देखना अपना पराया कौन है
हमला न करना सोच कर वो उग्र है वो मौन है
रण में खड़े सम्मुख तेरे, इन सबको दुश्मन मान ले
मत वक्त जाया करना इनकी नीयतें पहचान में
युद्ध में निर्दोष भी मरता है तो क्या पाप है
इस तबाही का भी दोषी स्वयं शत्रु आप है
ना समर में देखना अच्छाई क्या सच्चाई क्या
है अरि के पक्ष से जो भी उन्हें केवल मिटा
मातृभूमि को बचाने से बड़ा है कर्म क्या?
युद्ध में उतरे हो तो मत भूलना है धर्म क्या!
लड़ना है तेरा कर्म कर योद्धा है तेरा धर्म धर
गर हो अरि निर्दोष भी सम्मुख न उनके नर्म पर
ना मारने में शर्म कर!!
ना कांपने देना ये कर, न चुप पड़े तेरे अधर
रण भूमि में उतरा है तो तू युद्ध कर तू युद्ध कर!
– आदित्य कुमार
(बाल कवि)