मस्तक से थाल सजाऊंगा।

संकल्प उठाया राणा ने,
अब दुर्ग को मुझे बचाना है,
जान जाए या प्राण जाए,
मुगलों को मुझे भगाना है,
अब तय करे विधाता जीतूंगा या मर जाऊंगा,
उस हल्दीघाटी मे मस्तक से थाल सजाऊंगा।

जंगल में जीवन को जीके,
भिलों को मित्र बना डाला,
अमृत छोड़ा विष को पिके,
मुगलों को दूर भगा डाला,
अब तो बस प्रयत्न करूंगा धरा को आज बचाऊंगा,
उस हल्दीघाटी मे मस्तक से थाल सजाऊंगा।

मेरी धरती है मेवाड़ की,
घुसपैठी ना आने पाए,
मेरे प्राण रहेंगे जब तक,
हक ना कोई जताने पाए,
चेतक भी तैयार खड़ा है नाले को पार कर जाऊंगा,
उस हल्दीघाटी मे मस्तक से थाल सजाऊंगा।

मुझको ना कोई भय है,
चाहे वो कोई बड़ा दरिंगा है,
ए मेवाड़ चिंता मत कर,
ये बेटा तेरा जिंदा है,
जब तक मेरी जान रहे ना एक इंच बढ़ने दूंगा,
उस हल्दीघाटी मे मस्तक से थाल सजाऊंगा।

जब तक ना धरा सुरक्षित हो,
मृत्यु भी है स्वीकार नहीं,
धन से धरती बिक जाए तो,
उस धन से मुझको प्यार नहीं,
वतन तुझे है वचन हमारा ढाल तेरा बन बन जाऊंगा,
उस हल्दीघाटी मे मस्तक से थाल सजाऊंगा।

                    - आदित्य कुमार
                         (बाल कवि)

Popular Posts