कितना देश सहेगा अब?
कितने शीश गिरेंगे बोलो कितना लहू बहेगा अब?
सहनशीलता की हद होती कितना देश सहेगा अब?
धर्म पूछकर गो/ली मारी दुश्मन की इतनी औकात?
कब तक चुप बैठेगा बोलो भारत रखकर हाथ पे हाथ?
क्या राफेल और ब्रह्मोस महज दिखाएंगे झांकी
घर में घुसकर मार गया वो और कहो अब क्या बाकी?
पूछ रहा है सारा भारत उत्तर दे खद्दर–खाकी
कितने मां के लाल मरेंगे कितने बहनों की राखी?
पकड़ दरिंदो को लटका दो घायल करके खंभे पे
वर्षों वर्ष तक उन कुत्तों में खौफ हिन्द का बना रहे!
कौवे चील कबूतर जब जीते जी मांस को नाचेंगे
कितनी बड़ी करी है गलती तब जाकर वो सोचेंगे!
मारो ऐसी मौत तरस जाए वो खुद मरने खातिर
ताकि पाकिस्तान में कोई जन्मे न ऐसा शातिर
और अंत में कहना चाहूंगा वीरों एक अंतिम बात
जिसने भीतर की गद्दारी उनकी भी ऐसी हालत
आतंकी से बड़े वो दोषी जिसने दिया राष्ट्र को घात
जैसा सलूक आतंकी संग उसका दुगना गद्दार के साथ।
– आदित्य कुमार
(बाल कवि)