मानव तू संघर्ष है संघर्ष ही तेरा जीवन

ये कविता है उन्हें समर्पित,
जिन्हें न मेहनत से भय किंचित,
जिनको संघर्षों के बल पे मंजिल पाना आता है,
ये जग उनकी ही गाथा को बार बार दोहराता है,
संघर्षशील नर ही आगे जा नारायण कहलाता है,
संघर्षशील कोई राम बने तो रामायण बन जाता है।
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मुसीबतों के आगे जो शमशीर बने, न विचलित मन,
मानव तू संघर्ष है संघर्ष ही तेरा जीवन।

कांटो पर बिस्तर करता है,
निज पग में अंबर धरता है,
जल का महा समंदर चीड़े,
आग लगा दे नदी के तीरे,
जो विप्पतियों की झाड़ी में खोज है लेता उपवन
मानव तू संघर्ष है संघर्ष ही तेरा जीवन।।

तूफानों में पर्वत सा है,
निडर खड़ा है अटल खड़ा है,
जो लहरों से खेल रहा है,
मुस्कुराके सब झेल रहा है,
परेशानियों से लड़ने में खत्म करने में सक्षम,
मानव तू संघर्ष है संघर्ष ही तेरा जीवन।।

विफल सीढियां जोड़ने वाला,
किस्मत का रुख मोड़ने वाला,
असफलता ने ललकारा तो,
सफल दिखाता होकर के जो,
उस नर के ही भीतर होते स्वयं हरी नारायण,
मानव तू संघर्ष है संघर्ष ही तेरा जीवन।।

जो मेहनत को कर्म समझता,
मानवता को धर्म समझता,
जिसके मन परमार्थ भरा है,
वो केशव का पार्थ बना है,
जब जब गिरता स्वयं है उठता न दूजे का दामन,
मानव तू संघर्ष है संघर्ष ही तेरा जीवन।।

                                ~आदित्य कुमार 
                                     (बाल कवि)

                               
                           

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