भारत की छवि

हम तो खुद है एक नहीं,
भारत को कौन बचाएगा?
फिर से कोई अंग्रेज़ मुगल,
हम पर हावी हो जाएगा!

धर्म जाति पर लड़ने वाले,
कैसे धर्म बचाओगे?
राष्ट्र यदि बिक जाएगा,
तो कैसा धर्म निभाओगे?

आपस में लड़ कट मर कर के,
कैसे देश बचायेंगे?
बोलो तुम क्या देश को खाकर,
अपनी भूख मिटाएंगे?

क्या इसके खातिर ही,
भगत सिंह ने अपना जीवन वांरा?
क्या इसके खातिर ही,
इंकलाब का लगता था नारा?

क्या उन अमर शहीदों को,
अपने जीवन से प्यार नहीं?
क्या उन मां के लालों को,
था जीने का अधिकार नहीं?

उन्होनें अपना तन मन त्यागा,
क्या तुम जैसों के खातिर?
हिन्द को आजादी दिलाई,
क्या केवल बर्बादी खातिर?

क्या अपने ही संतानों से,
भारत अब घायल होगा?
क्या अब भारत में विनाश,
अब और सशक्त प्रबल होगा?

राष्ट्र यदि सम्मानित हो,
सम्मान तुम्हारा भी होगा,
यदि राष्ट्र पे आंच आए,
नुकसान तुम्हारा भी होगा!

बंद करो आपस में लड़ना,
वरना वो दिन दूर नहीं,
हम फिर से अंग्रेज़ों के,
घर पर होंगे मजदूर कहीं!

अबकिं बार छुड़ाने हमको,
भगत सिंह ना आएगा,
हम जैसों के खातिर अब,
कैसे कोई प्राण गंवाएगा?

राष्ट्र की कोई संपत्ति पर,
अब ना कोई आग लगाओ,
भारत मां की स्वच्छ छवि पर,
बेशर्मों! ना दाग लगाओ।

           - आदित्य कुमार
                (बाल कवि)






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