वीर अभिमन्यु की गाथा -2
है अर्जुन अनुपस्थित ये पांडव गण सारे चिंतित है,
चक्रव्यूह को तोड़ना कोई सरल कार्य ना किंचित है,
इतने में प्रनिपात करते आया शूरवीरों का नेता है,
ये वीरों का वीर कोई और नहीं गांडीवधारी का बेटा है।
अभिमन्यु ने कहा -
दो मुझको आदेश जाऊंगा आज युद्ध मै लड़ने,
मौका मुझको दो जाऊंगा उन दुष्टों के सीने पे चढ़ने,
युधिष्ठिर ने कहा -
उम्र नहीं है हे बालक ये कौशल दिखलाने का,
और वक्त नहीं है तुमको रणनीति सिखलाने का।
उम्र है सोलह की लेकिन मुझको चक्रव्यूह तोड़ने आता है,
ना है दूजा कोई विकल्प मौका दो इसमें क्या जाता है,
हठ अभिमन्यु करने लगा बोला मै तो जाऊंगा,
देखना काका चक्रव्यूह को तोड के वापस आऊंगा।
हुआ युधिष्ठिर फिर मजबूर दिया आदेश जाने का,
दुष्ट कौरवों को रण में अच्छा पाठ सिखलाने का,
उतर गया अभिमन्यु युद्ध में दिखलाया अपनी शक्ति,
दुष्ट कौरवों ने कि आखिर में कूटनीति कि भक्ति।
हुए पराजित कौरव बालक से उनको रास नहीं आया,
और देख के उसके रणकौशल को कोई पास नहीं आया,
कोई अस्त्र ना आया काम तब छल का एक सहारा था,
वरना वो धनंजय का बेटा किस कौरव से हारा था,
फिर वो कौरव अभिमन्यु पे कुत्ते के जैसे छुट पड़े,
उस निहत्थे बालक पे सब एकसाथ ही टूट पड़े
ख़तम हुआ संग्राम अब अभिमन्यु को मृत्यु ही भाया,
वो योद्धा हार के जीत गया और काल ने उसको अपनाया।
- आदित्य कुमार