नाम सभी रख लेंगे पर उसके जैसा कोई कर्ण नहीं
गंगा में मुझको छोड़ दिया अब प्यार जताने आई हो,
जीवन भर सुद्र का नाम मिला अब जेष्ठ बनाने आई हो,
आज युद्ध में पुत्र बनाया जीवन भर सूद्र कहाया मै,
अर्जुन के प्राण बचाने को आज क्षत्रिय कहलाया मै।
जीवन भर दुख काटे मैंने अब दुर्योधन ने मुझे संवारा था,
वरना तो सूर्यपुत्र होकर भी मै एक नीच आवारा था,
ऐसे मित्र को छोडूं, माता ये मेरे बस कि बात नहीं,
उसको छोड़ के जीवन में कोई और मेरे साथ नहीं।
माना कि राह ग़लत है पर मित्र धर्म भी निभाना है,
अरे जिस मित्र ने मुझको अपनाया जीते जी उसे बचाना है,
पर फिर भी तू कहती है तो मै एक वचन दे सकता हूं,
केवल अर्जुन के प्राण मै लूंगा बाकी चार छोड़ सकता हूं।
है मुझे पता अर्जुन के हाथो मेरी मृत्यु निश्चित है,
लेकिन मुझको मेरे काल से मन में भय ना किंचित है,
मुझको है पता मै ग़लत नहीं मै मित्र का धर्म निभाऊंगा,
उस मित्र के रक्षा के खातिर मै इश्वर से लड़ जाऊंगा।
अरे गुरु से लेके पिता तक सब ने मुझको छोड़ दिया,
एक झूठ से श्राप मिला, जीवन का धागा तोड़ दिया,
जीवन भर श्रापित हुआ हूं मै अब कैसे विश्वास करू,
अरे जो जीवन कि रोशनी है उससे कैसे आघात करूं।
जाओ मा चिंता को छोड़ो तेरे चार पुत्र बचा दूंगा,
यदि हुआ अर्जुन से सामना उसका अस्तित्व मिटा दूंगा,
यदि जो छोड़ा मित्र को तो जीवन भर पापी कहलाऊंगा,
जाओ जाके कह दो सबको मै उस पक्ष ना आऊंगा।
जननी से लेके मा धरती, किसने मुझे आंचल है दिया,
मेरे अंतिम काल में तो धरती मां ने भी मुझसे छल ही किया,
मुझे गर्व है खुद के कौशल पे अब चाहे मै मर जाऊंगा,
अरे खुद इश्वर ने जिसको है छला ऐसा सूर्यपुत्र कहाऊंगा।
उसने था कहा कि मित्र को छोड़ना कोई धर्म नहीं,
अरे नाम सभी रख लेंगे पर उस जैसा कोई कर्ण नहीं।
- आदित्य कुमार