ओ मुसाफिर
ओ मुसाफिर ओ मुसाफिर,
क्यों है बैठा तू निराश,
लौटने का ख्वाब क्यों है,
मंजिल के इतने होके पास।
अंधियारे से ना डर मुसाफिर,
कुछ देर कि मेहमान है,
मन में बस हिम्मत कर मुसाफिर,
लड़ना तो आसान है। ओ मुसाफिर-2
ना डर कभी कांटो से,
ये बस राह भटकाते चले,
अंधियारे से वो ही लड़े,
सूरज के जैसा जो जले।
राहों के कांटो से लड़ना,
थोड़ा सा मुश्किल तो है,
पड़ तू है लड़ सकता तभी,
हिम्मत जो तेरे दिल में है। ओ मुसाफिर-2
आकाश से धरती सभी,
झुक जाए तेरे सम्मान में,
ऐसा करो कुछ भी मुसाफिर,
राह हो आसान रे।
इन्सान बनने के लिए,
कांटो से तो लड़ना होगा,
आकश सा बनने को,
पर्वत पे तुझे चढ़ना होगा। ओ मुसाफिर-2
- आदित्य कुमार
" बाल कवि "
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