सीता स्वयंवर
कितने ही बलशाली राजा,
बैठे आज स्वयंवर में,
कौन तोड़ेगा धनुष ये देखे,
किसको मिलेगा अवसर ये,
राजा जनक करे प्रतीक्षा,
कौन उचित बेटी के खातिर,
दानव से लेके मानव तक,
आए है भोले से शातिर,
बारी आई लंकेश की,
उनको शक्ति पे था खूब अभिमान,
सोचा ये आसान बात है,
शिव से मिला उन्हें वरदान,
मन में आत्मविश्वास भरा था,
पर शायद मन काला ही था,
भक्त भले हो त्रिलोकी का,
फिर भी राक्षस का लाला ही था,
बहु प्रयास किए रावण ने,
धनुष ना एक इंच भी हिला,
जोड़ लगाया देह का पूरा,
तन बदन था एक दम हो गया ढीला,
लेकिन धनुष तो पावन था,
रावण के हाथो क्या हिलता,
जब रावण से भी हिला धनुष ना,
राजा जनक की बढ़ गई चिन्ता,
बोले मुझे नहीं लगता,
अब धनुष किसी से उठे यहां,
जब रावण सा बलशाली हारा,
तो इश्वर भी शायद रूठे है यहां,
इतने में आए गुरु विश्वामित्र,
कहा राजन एक बात सुनो,
है आय स्वयं रघुकुल नंदन,
किस्मत की बरसात सुनो,
आए स्वयं प्रभु रघुकुल नंदन,
धनुष उठा के तोड़ दिया,
राम सिया की बन गए स्वामी,
सीता से नाता जोड़ लिया।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"