बापू लाठी एक बार उठाते

बापू आज भी मेरे दिल में,
एक छवि तुम्हारी न्यारी है,
बापू आज भी रग राग में,
एक छवि तुम्हारी प्यारी है।

लेकिन बापू वो तीन वीर,
जब आते आंखो के आगे,
तुम सब कुछ कर सकते थे,
फिर क्यों उन्हे बचाने से भागे,

उन्हे बचा लेते बापू,
वो अंग्रेज़ो के काल ही थे,
पथ भले अलग हो लेकिन,
वो भी भारत मां के लाल ही थे।

सत्य अहिंसा के तलवार ने,
कहां उन्हे आघात दिया,
मां के घाव भरने वाले,
मरहम भी तुमने बांट दिया।

बापू मंजिल एक ही थी,
बस राह तुम्हारे अलग हुए,
तुमने शांति चाहा पर वो,
हिंसा के सहारे अलग हुए।

उन अंग्रेज़ों ने तो ना,
जलियांवाला को छोड़ा था,
लाखों के हत्यारे ने,
मर्यादा जिस दिन तोड़ा था,

उस दिन कहां थे तुम बापू,
उपदेश तुम्हारे कहां गए,
जिस दिन बच्चे से बूढ़े सब,
खूनी पानी से नहा गए।

एक लाठी से तुमने बापू,
जिस जंजीर को तोड़ा था,
याद रखो उन तीनो ने ही,
कमजोर उसे कर छोड़ा था।

इस आजादी के बापू,
केवल आधे हकदार हो तुम,
जो बातों से माने केवल,
उनके खातिर हथियार हो तुम।

बुद्ध के जैसे बनना है तो,
उंगलिमाल यहां ना मिलता है,
और जो तलवार तुम्हे बनना,
वो ढाल यहां ना मिलता है।

यहां एक एक अंग्रेज़ कंश सा है,
तो चक्र उठाना पड़ता है,
ये हिंसा के ही प्रेमी,
इन्हे हिंसा दिखलाना पड़ता है।

आजाद तुम्हे भी करना था,
आजाद उन्हे भी करना था,
बस राह अलग हुए तो क्या,
दोनों को पथ पे मरना था।

बापू ये लाठी जो है,
केवल चलने के काम नहीं आती
इसका एक उपयोग करते,
लाखों की जान नहीं जाती।

ये लातो के भूत है ओ बापू,
बातो से समझ नहीं सकते,
लाठी से केवल चलते ना,
इसका उपयोग भी तुम करते।

चलते जिस लाठी से,
उसे एक बार उठाते तुम बापू,
जो अंग्रेज़ ना शांत रहे,
उन्हे मार भगाते तुम बापू।

तुमको ना इसमें रुचि थी,
कम से कम उन्हे बचा लेते,
केवल आजादी मकसद थी,
तो एक जीवनदान उन्हे देते।

बापू माना कि प्रेम से ही,
ये दुनिया आगे बढ़ती है,
लेकिन शस्त्र उठाना पड़ता है,
जब पाप की सीमा चढ़ती है।

                                - आदित्य कुमार

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