मर्जी इश्वर की

एक कबूतर बैठ डाल पे,
खूब मजे में झूम रहा,
उसने देखा एक शिकारी,
खोज में उसके घूम रहा,

नजर पड़ी उस बहेलिए की,
देख कबूतर घबराया,
ऊपर देखा आसमान में,
बाज़ भी भूखा था आया,

देख कबूतर सोचा मन में,
आज नहीं बच पाऊंगा,
दोनों तरफ खड़े है शत्रु,
आज तो मैं मर जाऊंगा,

नीचे खड़ा शिकारी,
आज गोली से मुझे उड़ाएगा,
अगर मै भागा आसमान में,
बाज़ मुझे खा जाएगा,

लेकिन जिसपे कृपा कृष्ण की,
जीवन उसका लेगा कौन,
कृष्ण अगर चाहेंगे ना तो,
मृत्यु उसको देगा कौन।

देख कबूतर दुष्ट शिकारी,
मन ही मन था हर्षाया,
मांस कबूतर का खाने को,
बाज़ भी ऊपर मंडराया,

लेकिन देख प्रभु की माया,
परिस्थिति ने करवट फेरा,
मित्र था उसका नन्हा बिच्छू,
बगल में था उसका डेरा,

देखा मित्र को संकट में,
तो बिच्छू से ना रहा गया,
मारा ऐसा डंक शिकारी,
से ना तनिक भी सहा गया,

दर्द से चीख उठा शिकारी,
बंदूक निशाना चूक गया,
सुन आवाज गोली चलने की,
मासूम का काया सुख गया,

गई गोली आकाश में ऊपर,
और बाज़ को ढेर किया,
गिरा धराम से बाज़ धरा पे,
और प्राण देह छोड़ गया।

इधर जहर से दुष्ट शिकारी,
भी यम लोक प्रस्थान किया,
दोनों दुष्टों के लालच ने,
ही दोनों का प्राण लिया।

इसीलिए ये याद रखो कि,
लालच कभी नहीं करना,
और ना जबतक चाहे इश्वर,
तब तक नहीं हमे मरना।

                       - आदित्य कुमार
                           " बाल कवि "



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