उलटी दुनिया

ये दुनिया बड़ी निराली है,
ना जाने क्या क्या दिखता है,
झूठी दुनिया देख यहां पे,
कवि भी झूठा लिखता है।

जो सच्चे दिल से करे कमाई,
वो मेहनत करते मर जाता है,
और घूसखोर, कपटी छलिया,
जीवन भर मौज उड़ाता है।

यहां राम के नाम का माला,
रावण दिन रात ही गाता है,
कंस के जैसा क्रूर यहां पे,
खुद को कृष्ण बताता है,

उन युग में कम से कम,
देव दानव पहचाने जाते थे,
बुरा किया तो बुरा मिलेगा,
कर्मो का फल पाते थे।

पर ये कलयुग यहां नहीं तुम,
अच्छे बुरे का अंतर पाओगे,
कौन राम है कौन है रावण,
खोजत ही रह जाओगे।

पहने राम नाम का गमछा,
पर मन में रावण शोर करे,
झूठा मदद भी करे और,
परेशानी भी एक ओर करे।

उलटी दुनिया उलटे लोग,
इनको समझ ना पाओगे,
अगर समझना इनको चाहा,
खुद को भी भूल ही जाओगे।

                             - आदित्य कुमार
                                  "बाल कवि"

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