एक कंजूस सेठ
एक था सेठ बड़ा कंजूस,
पैसों को दबा के रखता था,
ना एक रुपैया खर्च हो कभी,
पैसे छुपा के रखता था,
बेटा अगर खिलौना मांगे,
मिट्टी का बना के देता था,
जब बीवी बोले गहनों को,
मोह माया है कह देता था,
एक बार एक पेड़ पे उसने,
देखा एकदम ताज़ा फल,
सोचा एक टोकरी में रख के,
इसको मै बेचूंगा कल,
चढ़ा पेड़ पर तोड़ने फल,
काफी फल को तोड़ लिए,
लेकिन जब देखा नीचे तो,
दोनों हाथों को जोड़ लिए,
बोला प्रभु बचा ले मुझको,
एक हजार ब्राह्मण भोज करूंगा,
अगर आज जो मुझे बचाया,
दान नारियल रोज़ करूंगा,
कोशिश किया आया थोड़ा नीचे
फिर से देखा, नापी ऊंचाई,
कंजूसी उसकी जाग गई
मन में उसके एक युक्ति आई,
बोला प्रभु पांच सौ पक्का,
इनको दावत दे दूंगा,
बस नीचे मुझे उतार दो इश्वर,
बदले में ना कुछ भी लूंगा,
थोड़ा और आया जो नीचे,
फिर से नीचे देखा एक बार,
बोला प्रभु हूं वादा करता,
एक सौ एक खिलाऊंगा इस बार,
इश्वर ने जब देखा कि,
ये कंजूस कभी ना सुधरेगा,
ये और कम कर देगा दावत,
जैसे ही नीचे उतरेगा,
सच मे ऐसा ही हुआ,
जैसे ही सेठ उतरा नीचे,
सबसे पहले ऊपर देखा,
इश्वर की ओर आंखे मिचे,
बोला प्रभु चलो कम से कम,
ग्यारह को पक्का दावत देना है,
इश्वर गुस्से में बोले,
तुझसे मुझको कुछ भी ना लेना है,
तू भाग यहां से वरना पापी,
अभी ही तुझे उठा लूंगा,
तुझ जैसे कंजूस के ऊपर,
बिजली अभी गिरा दूंगा,
बोला सेठ चलो हे नाथ,
तुम्हारी आज्ञा ना तोड़ूंगा,
तुमने कहा है इसके खातिर,
अब किसी को दावत ना दूंगा,
इतना सुनते ही इश्वर का,
पारा पूरा गरम हो गया,
उधर वो कंजूसो का राजा,
घर जा के कम्बल तान सो गया।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"