शीतलहर

शीतलहर ने फिर से अपना,
प्रचंड खौफ फैलाया है,
सूरज को डरा रहा है ये,
पानी को बर्फ बनाया है,

पास बैठ के आग के सब,
शीतलहर से लड़ते है,
पर ज्यों गए जो दूर आग से,
फिर से शीत से डरते हैं,

सर पे टोपी बदन में कपड़े,
यदि नहीं भरपूर है पहने,
तो फिर हो जाओ सावधान,
यही है शीतलहर के गहने,

खुली कान में घुसी हवाएं,
शरदी खांसी खूब सताए,
ठन्ड अगर लग गई देह,
तो तुमको भगवान बचाए,

कम्बल में दुबके ही रहना,
बाहर बिना काम ना आना,
कितनी भी गाली पर जाए,
पर तुम ठंड में नहीं नहाना,

जितना हो तुम ठंड से बचना,
चाहे पड़े मार ही खाना,
ठन्ड में तुम कम्बल में रहना,
पानी से है देह बचाना।

                        - आदित्य कुमार
                           "बाल कवि"

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