सरहद पे मा का लाल
ठंडी से लेके गर्मी में,
सरहद पे कोई अडा हुआ,
हर एक संकट से लड़ने को,
वो हिंद का लाल है खड़ा हुआ,
जिस दिन सेना में उसकी,
भर्ती की चिट्ठी निकली थी,
बाप का सीना गर्व से फुला,
पर मा तो कुछ पिघली थी,
लाखो लाख समझाया मा को,
मा मेरी क्यों रोती है,
आशीर्वाद अगर मा तेरा हो तो,
जिंदगी ना इतनी छोटी है,
आधा जीवन बीत गया मा,
तेरे इन आंचल में मेरा,
अब धरती मा का कर्तव्य निभाऊं,
सरहद पे ही मेरा डेरा,
मा ने कहा जाओ मेरे लाल,
अब धरती का कर्तव्य निभाओ,
सदा सलामत रखना मुल्क को,
आशीष हमारा ले जाओ,
बेटे ने वचन दिया मा को,
शेरे- दिल तेरा बेटा हूं,
मुल्क सलामत सदा रहेगा,
वचन तुझे मै देता हूं,
मेरे वतन पें चढ़ने से पहले,
दुश्मन को नरक दिखला दूंगा,
भारत मा पे आंच ना आएगी,
मै सबक उन्हें सिखला दूंगा,
मा वचन मेरा यदि मुल्क को,
मेरे आंच कोई पहुचायेगा,
तो तीन रंग का हिंद तिरंगा,
दुश्मन की छाती पे लहराएगा।
इतना वचन दिया मा को,
और सरहद पे निकल गया,
हथियार उठाया वीर ने और,
कर्तव्य निभाने निकल गया,
एक दिन जंग छिड़ी भयानक,
हिंद के सारे शेर लड़े,
उन्ही शेर में एक शेर के हाथो,
दस दस लाश गिरे,
उस मा को एक दिन,
चिट्ठी में बेटे का संदेश मिला,
लिखा हुआ था जाता हूं मा,
इश्वर का है आदेश मिला,
मा मेरी तू फिक्र न करना,
वचन तुम्हारा निभा दिया,
मैंने युद्ध लड़ा शत्रु से,
हिंद को अपने बचा लिया,
पढ़ के ये संदेश मा मानो,
सुन सी थी पड़ गई,
बेटे की मौत की मिली खबर,
वो जननी एक दम सिहर गई।
अन्तिम वक्त में भी उस लाल को,
मौत से डर ना दिखता था,
जिंदगी मौत के बीच पड़ा,
फिर भी मा को कुछ लिखता था,
उसने सोचा मा को,
कमसे कम इतना बतला दूंगा,
कर्तव्य को मैंने किया है पूरा।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"