हिंद के गद्दार

जब जब बाहर का आके कोई,
भारत मां के सिर बैठा है,
अपनों का हरदम हाथ रहा,
इतिहास गवाही देता है।

अरे कायरो मौत से इतना ही डर था,
तो क्यों धरती पे जन्म लिया,
यदि राष्ट्र के काम ना आ सकते,
तो क्यों ऐसा जीवन जिया।

यदि औकात नहीं थी शीश गिराने की,
गद्दारी भी तुम ना करते,
चूड़ी तुम पहने रहते,
कम से कम लड़ने वाले तो ना मरते।

जयचंद प्रभु तुमको तो देख,
ना जाने क्या क्या मन करता है,
याद तुम्हारी आती है,
कोई कुत्ते की मौत जब मरता है,

गौरी से तुम जा मिले,
चौहान को धोखा देने को,
क्या बाप तुम्हारा गौरी था,
बेताब थे तुम धन लेने को।

अब अगले है मान सिंह,
ये भी कुछ कम गद्दार ना थे,
मुगलों को हरदम अपनाया,
उनके खातिर खुद्दार ये थे।

हल्दी घाटी में महाराणा को दे धोखा,
साबित है किया तुम मुगलों के दूत ही हो,
पर पढ़ इतिहास तुम्हारा,
सोचूं क्या सच में तुम राजपूत ही हो।

अगले महानुभाव सिंधिया जी,
शायद अंग्रेज़ो के वंश ही थे,
हिंद कि धरती पे कलंक,
अपनों के ये विध्वंश ही थे।

महारानी के बनके विरोधी,
इन्होंने अंग्रेज़ो से मित्रता निभाई थी,
ये उस दिन खूब मजे में थे,
जिस दिन धरती चिलाई थी।

राष्ट्र के रक्षा के खातिर,
यदि उठता है तलवार नहीं,
तुम प्राण उसी दिन त्याग दो,
तुमको जीने का अधिकार नहीं।

एक अभियान शुरू करना होगा,
यदि भारत को हमे बचाना है,
शत्रु को बाद में देखेंगे पहले,
जयचंद को ही टपकाना है।

                              - आदित्य कुमार

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