तू हार मत स्वीकार कर
जीत के खातिर बना तू,
ना कदम पीछे बढ़ा,
गिर के तू फिर उठ सकता है,
आगे ही आगे बढ़ते जा।
हर एक कठिनाई से लड़,
और जीत का हथियार बन,
बस जीतने तू आया है,
तू हार मत स्वीकार कर,
क्यों है खड़ा मायूस सा,
किसका तुझे अब आस है,
खुद के कदम आगे बढ़ा,
मंजिल बहुत अब पास है,
जीत का है स्वप्न तेरा,
स्वप्न को साकार कर,
जीत है मंजिल तेरी,
तू हार मत स्वीकार कर,
चिंगारी तुझ में जल रही,
ज्वाला सा उसको अब जला,
तेरे राह में अंधेरा है,
उस ज्वाला से रौशन बना।
क्यों लौटता तू हार के,
मंजिल पे बस अधिकार कर,
डर के इन कठिनाइयों से,
हार मत स्वीकार कर,
क्यों चांद तुझको बनना है,
तू सूर्य क्यों ना बन सके,
दूजो के आसों पे ना चल,
ऐसा बन की खुद ही जल सके,
जीत से ना तू भटक,
ना हार का आहार बन,
देख के राहों के रोड़े,
तू हार मत स्वीकार कर।
- आदित्य कुमार