कितने दुख से मिली आजादी थी

कंपनी बनाने आय थे कर दी सारी बर्बादी थी,
कैसे कहूं दोस्तों कितने दुख से मिली आजादी थी,
जब लोग हुए जागरूक तब क्रांतिकारी सारे गरमाए थे,
आओ तुम्हे बताता हूं कितने वीरों ने प्राण गवाएं थे।

एक शांतिपूर्ण बैठक करना था अमृतसर के बाग में,
पर शायद उस दिन मौत लिखी थी उन लोगो के भाग में,
उस जालिम डायर ने लोगो को खुनो से नहा दिया,
बच्चे बूढ़े कुछ ना देख केवल कटरा कटरा बहा दिया।

अरे अंग्रेज़ो शर्म ना आई कैसे हाथ उठे बंदूक चलाने को,
एक तो देश पराया ऊपर से इतने लोगों के लाश गिराने को,
हम तो अपने देश में खुश थे सारे अच्छे भले और चंगे थे,
तुम ही मेरे देश में आए बनके भूखे भिकमंगे थे,

सबसे पहले इनका पाला पड़ा झांसी के रानी से,
जिनकी वीरगाथा है झलकती बुंदेलों कि जुबानी में,
अपनी वीरता दिखा रही है झांसी के मैदानों में,
खून की प्यासी बनी कटारे निकल पड़ी म्यानों से।

कोई कसर ना छोड़ी रानी ने इनको धूल चटाने में,
ना रुकी है कोई कटार यहां दुष्टों के शीश गिराने में,
लेकिन इन दुष्टों ने यहां अपनी औकात दिखा डाली,
एक अकेली सिंहनी से कुत्तों की फौज भिड़ा डाली।

अब आगे कुछ और महा वीरों की बातें बाकी है,
जिन पे इन दुष्टों ने अपनी कूटनीतियां दागी है,
राज गुरु, सुखदेव, भगत को कैसे हम सब भूल गए,
जो भारत मा और हम सब के खातिर फांसी पे झूल गए।

अंत में दो महापुरुषों ने इस संघर्ष के मुख को मोड़ा था,
कमजोर हुई जंजीर को बापू ने दो लाठी से तोड़ा था,
सत्य अहिंसा नाम के ये दो लाठी बड़े कमाल के थे,
बापू कि सुनी हमने पर अंग्रेज़ो के दोनों थप्पड़ गाल पे थे।

कभी कभी लातो के भूत बातों से समझ ना पाते है,
इनको समझाने के खातिर सुभाष चन्द्र जी आते है,
कभी कभी इनके समक्ष शांति से काम नहीं होता,
इनको समझाने के खातिर बापू का गुणगान नहीं होता।

अब हो गया इन्हीं पंक्तियों से इतना ही मुझको बतलाना था,
कितनी दुख से मिली आजादी थी आज तुम्हे समझाना था।

                                                - आदित्य कुमार

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