एक झूठी दुनिया

यहां भी झूठा, वहां भी झूठा
देखो सारे जहां में झूठा,
कुछ जो सच बोलेंगे मुख से,
तो उससे सारा जग रूठा,

झूठ पे मांगे नोट यहां पे,
झूठ पे मांगे वोट यहां पे,
जो सच कि पूजा करते तो,
उनको मिलते चोट यहां पे,

महिला झूठी मर्द भी झूठा,
मरहम झूठा दर्द भी झूठा,
झूठ बोले तो पूजा होगी,
सच बोले तो अंग ही सूजा,

झूठ यहां पे रग रग में है,
सच का पुजारी कहां जग में है,
झूठ पे फूल बिछाए जाते,
सच का तो कांटा हर पग में है,

अपना स्वार्थ यहां सब चाहे,
एक सच छोड़ झूठ कई राहे,
झूठा यहां पे मौज करे,
सच्चा तो केवल यहां कर्राहे।

पाताल भूमि अंबर भी झूठा,
देखो यहां हर समंदर भी झूठा
प्रेम झूठा नफरत भी झूठा,
मानव से लेके छूछुंदर भी झूठा।

राह के कांटे भी झूठे,
राह के मुश्किल भी झूठे,
मानव का सब कुछ है झूठा,
इसके काले दिल भी झूठे।

ये है तेरी पृथ्वी हे नाथ,
जहां झूठा लोगों का साथ,
यहां है भानु का दिन भी झूठा,
और चन्द्र का झूठा है रात।

                                - आदित्य कुमार

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