एक फौजी -भारत का शेर
प्राणों कि चिंता छोड़ उतर आए है हम मैदानों में,
चाहे जान भले ही जाए शत्रु का शीश गिराने में,
अगर राष्ट्र के काम न आए तो जीवन का अर्थ नहीं,
अरे! दुश्मन से डर जाऊं इतना नीच मेरा सामर्थ्य नहीं।
सर पे कफ़न बांध आए है दुश्मन से लड़ जाने को,
मां भारती के वीर सपूतों कि ताकत दिखलाने को,
हर आखिर सांस तक देश कि शान नहीं जाने दूंगा,
जब तक दस को मार न दूं तब तक प्राण नहीं जाने दूंगा।
हर एक वीर भारतीय शत्रु से खून कि होली खेलेगा,
हर लहू का आखिरी कटरा भारत मां कि जय बोलेगा,
आखिरी सांस तक मां मै तेरा शीश नहीं झुकने दूंगा,
जब तक दस को मै मार न दूं अपना शीश नहीं गिरने दूंगा।
तुम बारूद ही बन आओ आज तैयार हूं मैं टकराने को,
पहले तुमको मारूं फिर तैयार हूं शहीद कहलाने को,
आजाओ तैयार हूं मैदान में तुम्हे कयामत दिखलाने को,
किस से हो लड़ने आए तुम्हे तुम्हारी औकात बताने को।
आंख उठाया है भारत पे मृत्यु के मुख में जाओगे,
मिट्टी में ही मिल जाओगे गर हमसे जो टकराओगे,
पीछे वार हो करते पीछे ही सिम्मत के रह जाओगे,
हम शेर दहाड़ेंगे जिस दिन अगला न जन्म ले पाओगे।
- आदित्य कुमार