आखिरी विनती
वनवास भोग के पांडव गण,
हस्तिनापुर फिर आए थे,
दुर्योधन की सांसे अटक गई,
जब पांडव सम्मुख में आए थे।
धूप और कठिनाई से,
काफी लड़ी लड़ाई थी,
संघर्ष से लड़ के,
पांडव गण ने नवीन शक्तियां पाई थी।
कौरव ने सोचा पांडव अब,
खोखले बहुत हो गए होंगे,
राज्य तो लेना दूर की बात,
लड़ने की कैसे सोचेंगे।
सौभाग्य जिसे अपनाता है,
वो सर्वधनी हो जाता है,
संघर्ष से जो लड़ता है यहां,
वो ही सब सुख को पाता है।
आए प्रभु स्वयं कौरव से,
देने पांडव का संवाद,
शांति से न्याय करो दुर्योधन,
ताकि ना हो युद्ध का नाद।
देखा वासुदेव ने दुर्योधन,
आधा राज्य नहीं देगा,
मनसा है उसकी यही,
वो सर्वनाश ही देखेगा।
कहा हरी ने हे दुर्योधन,
आधा राज्य नहीं दोगे,
कम से कम पांच गांव देदो,
आशीष समाज की ले लोगे।
पर वो कुरुकुल का हत्यारा,
कहां मानने वाला था,
क्या होगा इसका परिणाम,
वो कहां जानने वाला था।
पांच गांव भी देने में,
उसको अपना अपमान लगा,
उस दिन सारे कुरुकुल को,
दुर्योधन हैवान लगा।
देखा कृष्ण ने ये दुर्योधन,
प्रेम का ना अधिकारी है,
मानव का है रूप इसका,
पर राक्षस का अवतारी है।
फिर कृष्ण ने इसको,
चेतावनी दे समझाने का प्रयत्न किया,
उस दुष्ट ने उल्टा त्रिलोकी को,
जंजीर में लाने को प्रयत्न किया।
कुपित हुए ब्रह्माण्ड के स्वामी,
और रूप विस्तार किया,
दुर्योधन को दिखलाने,
विकराल रूप अवतार लिया।
देख रे पापी देख यहां,
क्या अब भी मुझको बांधेगा,
जंजीर में तेरी है क्या शक्ति,
इस रूप को मेरे सांधेगा।
ये तीनों काल मेरे हाथो,
ब्रह्माण्ड है मेरे पावं में,
तू पांच गावं ना दे जो सका,
जीवन है तेरा दावं पे।
इस रूप को देख सभा गण सारे,
थर थर थर थर कांप रहे,
दुर्योधन के दृढ़ता का परिणाम,
पहले ही थे भांप रहे।
हरी कृष्ण की माया,
अंधे को भी कुछ पल संसार दिखाया,
धृतराष्ट्र ने कुछ अच्छा था किया,
जो प्रभूवर ने अवतार दिखाया।
एक विदुर जो महा थे ज्ञानी,
पुण्य का उन्हें मिला परिणाम,
खुद के कर्मो के चलते ही,
दर्शन दिए स्वयं भगवान।
- आदित्य कुमार