कर्ण का गर्व
कुरुक्षेत्र में आज खड़े है हाथी घोड़े पैदल सेना,
सोच रखा है मरना है या है शत्रु के प्राण ही लेना,
कोई छल से लड़े कोई बल से ना कोई पीछे हटने वाला है,
धधक रही है लहू देह की बह रहा प्रतिशोध का ज्वाला है।
आज दो भाई ही शत्रु के रूप में देखे जाएंगे,
हिल उठेगी ये पृथ्वी जब दोनों आपस में टकराएंगे,
कोन है सर्वश्रेष्ठ आज इस युद्ध को ही बताना होगा,
दोनों में से किसी एक को खूनों से आज नहाना होगा,
हुआ शुरू तब समर, समर में काफी चली लड़ाई थी,
दोनों ने एक दूजे को अपनी अपनी शक्ति दिखलाई थी,
आज कोई ना कोई मरेगा बीच से सबको हटा दिया,
श्री कृष्ण के एक इशारे धरती ने कर्ण का पहिया दबा लिया।
जीवन उसका था छल से भड़ा, अंत भी छल के भेट चढ़ा,
सूर्यपुत्र हो कर भी वो योद्धा ना जाने क्यों ऐसी मौत मरा,
लेकिन उसको गर्व था खुद पे इश्वर से छला गया था वो,
कृष्णा खुद हाथ जोड़े जिसको ऐसा अवसर पाया था वो।
- आदित्य कुमार