भारत अपनाओ सभ्यता बचाओ

जहां करते रहे तर्रकी लेकिन सभ्यता बेचने वाला काम,
देखो! ऐसे निखर रहा है अपना प्यार हिंदूस्तान,
माता पिता को कड़ा जवाब और गुरुओं को ठगने का काम,
सब कुछ में आगे होके भी पीछे रह गया हिन्दुस्तान।

जहां बाला एक एक राधा थी और बालक सब थे श्याम,
लेकिन कुछ लोगों के चलते आज है देश मेरा बदनाम,
आज विदेशी चाह रहे है भारतीय संस्कार अपनाना,
लेकिन प्रण है किया हम ने अपनी सभ्यता को बेच है खाना,

हम सदा से रहे है विश्वगुरु फिर क्यों हम खुद को बेच रहे,
पश्चिम सभ्यता है मन चाही अपनी सभ्यता को भूल रहे,
इंसानों को भी पूजा हमने पर अब स्वयं को ही है बांट रहे,
अपनी सभ्यता को फिर अपना के चलो दुबारा साथ रहे।

जग हम से हरदम सीखा है फिर हम क्यों दूजो से सीखे,
अब अपनी सभ्यता को अपना के चलो नया इतिहास लिखे,
इस कविता को लिखते लिखते मैंने सपने बड़े सजाए है,
अपनी सभ्यता को अपना लो ये जागरूक करने आय है।


                                             - आदित्य कुमार

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