वीर अभिमन्यु की गाथा
ख़तम करो संग्राम हे वीर तुम हो भयभीत नहीं सकते
छल अब करना ही होगा हम बल से जीत नहीं सकते,
सोलह वर्ष कि उम्र में जिसने चक्रवियुह को तोड़ दिया,
अर्जुन का ये लाल है जिसने काल का मुख भी मोड़ दिया।
ना डरा कभी मृत्यु से और ना माना हार कभी जीवन में,
है कौन भला उससे सर्वश्रेष्ठ योद्धा इस कुरुक्षेत्र के रण में,
अरे काल को देख के हसता था वो मृत्यु का अभिलाषी था,
मुझे गर्व है वो वीरों का वीर मेरी धरती का वासी था।
अरे जहां भीष्म और द्रोण हो वहा क्यों छल करना पड़ता,
है यही गवाही वो बालक बिन छल के ना किसी से मरता,
हो शत्रु को भी गर्व जिसपे वो बालक बड़ा मतवाला था,
है कौन भला उस सा जग में वो अभिमन्यु बड़ा निराला था।
- आदित्य कुमार