कुंभकरण एक सच्चा योद्धा
सारे योद्धा मारे गए है अब कुंभकरण को जगाओ,
भ्राता है उसका संकट में ये कोई उसे बताओ,
मिला आदेश रावण का सारे सैनिक लगे जगाने में,
छह महीने से सोया ये राक्षस मिले सारे उसे उठाने में।
उठा ये बलशाली दानव उठते ही भीषण हुंकार किया,
खाया छह महीने का खाना और भीषण महा डकार लिया,
अब बारी आई मिला रावण से पूछा क्यों मुझे जगाया है,
इतने योद्धा मारे गए है आखिर किसके साथ लड़ाया है।
कहा रावण ने "ना जाने वो कौन वीर बलशाली है,
वो है स्वयं नारायण या मानव वो केवल खाली है,
मै एक नींद में क्या डूबा तुम क्या कुरकंड कर बैठे हो,
है क्या गलती तुमने की जिसके खातिर द्वंद कर बैठे हो,
तुम मुझे ना यूं बोलो मैंने बस जाती का अनुसरण किया,
उसने बहन का काटा नाक मैंने भी सीता हरण किया,
जो गलती की है उसे सुधारो वरना मृत्यु को पाओगे,
खुद तो सजा पाओगे संग हम सब को भी ले जाओगे।
मैंने गलती की है लेकिन अब मुझे ना अधिक सिखाओ तुम,
भ्राता है तुम्हारा संकट में अब अपना कर्तव्य निभाओ तुम,
ठीक है भैया आदेश तुम्हारा मै ना अब ये काटूंगा,
है मुझे पता कि उस रण में ही प्राण मै अपने त्यागुंगा।
फिर गया युद्ध में राम से लड़ने वो निर्दोष बेचारा था,
था उसे पता अन्याय है ये पर वो कर्तव्य का मारा था,
जब वानार सेना हार गई फिर स्वयं आए दशरथ नंदन,
देख के उन्हे उस कुंभकरण ने किया सर्व प्रथम वंदन।
फिर अपना कर्तव्य निभाया रण में भीषण चली लड़ाई थी,
गर्व किया उसने खुद पर स्वयं स्वामी से मिली विदाई थी।
- आदित्य कुमार