मानवता बचाओ

मानव अब भी जिंदा है,
पर मानवता का अंत हुआ,
ये वही कृष्ण की धरती है,
जहां पाप का सीमा अनंत हुआ,

पूजे जाने थे जहां इश्वर,
वहां शैतान पुजाए जाते है,
और लाखों पापों के अपराधी,
साधु कहलाए जाते है।

एक रूप यहां मानव का,
दानव भी वास वहीं करते,
कृष्ण के वो विपरीत चले,
अच्छाई से ही है लड़ते।

कृष्णा ने जिसको फूल बनाया,
वो सूलों सा व्यवहार करे,
खुद मानवता को बेच दिया,
अब बचे हुए पे वार करे,

मुख में राम बगल मे छुड़ी,
यहां देखने मिलता है,
पुण्य कमल कीचड़ में पड़े है,
पाप हर जगह खिलता है।

बेबस पशु तड़प जाते है,
रोटी के एक टुकड़े के बिना,
यहां मानव ने उनके मुख से,
पड़ा आहार भी है छीना।

संभलों अभी भी वरना,
धरती शर्म से ही मर जाएगी,
मानव तो जीवित रहेंगे पर,
मानवता लुप्त हो जाएगी।

                             - आदित्य कुमार

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