मेरे दादाजी के लिए.......
नाते रिश्ते सब तोड रहे,
माया मोह बंधन छोड़ रहे,
आखिर ये राह है कैसा जिसमे
सब से मुख हो मोड़ रहे,
मै पूछ रहा हूं आखिर मृत्यु ऐसे ही मिलती है क्यों,
मै पूछ रहा हूं आखिर जिंदगी ऐसे ही ढलती है क्यों,
जाते जाते बतलादेते किस देश में नया ठिकाना है,
याद तुम्हे जो लोग है करते आखिर उन्हें बताना है,
वन में ना मिलते हो, ना मिलते हो नदी पहाड़ों पे,
हम समझ नहीं है पाते क्या बैठे हो किन्हीं सितारों पे,
हम याद है करते प्यार भरी वो बातें हमे बताते थे,
किसी चीज़ को ले गुस्सा होते तो कैसे उन्हे मानते थे,
जब भी मन होता था उदास तो बातें उनसे करता था,
लगता था उनका हर एक लब्ज़ मेरे उदासी को हरता था,
अब सपने बन के रह गए है वो प्यार भरी मुस्काने भी,
अब आशीर्वाद ही दे दीजिए जीवन बेहतर बनाने कि।