रावण का दहन

मन में बैठा रावण तुम पुतले जलाते रहे,
खुद में हजार गलती दुजों को ग़लत बताते रहे।

अपने गंदे हाथो से रावण को कब तक जलाओगे,
कितने ही पाप तो खुद भी किए हो खुद को कैसे छुपाओगे।

अगली जो पंक्ति कह रहा हूं उसमे कोई सक नहीं है,
रावण की बुराइयां अपना उसे जलाने का कोई हक नहीं है।

खुद को राम कहो क्या तुम में ऐसी कोई बात है,
रावण को फूंकने जा रहे हो क्या राम बनने को औकात है?

दूजो को ग़लत कहने से पहले एक बार खुद में झांक लेना,
रावण को जलाने से पहले एक बार खुद में तांक लेना।


                                             - आदित्य कुमार

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