गरीबी को करीबी से देखा है

जब धूप में हम घर में बैठे, तब वे खून पसीना जलाते है,

हम बैठे अर्निंग करते है वो देह जला के कमाते है,

आज एक को खेत में मैंने खून जलाते देखा है,

मैंने पहली बार ग़रीबी को करीबी से देखा है।


इनकी दुर्दशा देख लगता अक्षु को बाधित है,

लेकिन कभी कभी लगता है हम भी इन पे आश्रित है,

आज एक को खद्दान में मैंने खून जलाते देखा है,

हां मैंने पहली बार ग़रीबी को करीबी से देखा है।


बेटे के खुशियों के खातिर पिता को कुछ ऐसा करते देखा है,

देह को अपने बेच दिया, कुछ ऐसा करते देखा है,

आज एक को कड़ी धूप में पत्थर पे हथौड़ा चलाते देखा है,

हां मैंने पहली बार ग़रीबी को करीबी से देखा है

        

                                                     - आदित्य कुमार

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