याद रहे हरदम झांसी

ना जाने कितने चोरों ने,
भारत मा को आघात किया,
निज धरा के बंटवारे में तो,
कुछ अपनों ने भी साथ दिया।

आखिर में गोरों ने भी,
इस धरती पे कदम बढ़ाया था,
इस सोने के चिड़िया के पंख को,
नोच नोच के खाया था।

अंग्रेजों की तानाशाही से,
धरती डोल रही थी जी,
आजाद करो हे वीरों,
बस इतना ही बोल रही थी जी।

इनका कदम पड़ा झांसी में,
वो धरती थी लक्ष्मीबाई की,
निज धरा को देख के खतरे में,
गोरों की बनी तबाही थी।

पति देव को हाल ही में,
ईश्वर ने प्यारा बना लिया,
फिर भी उस नारी ने हिम्मत कर,
अंग्रेज़ो से युद्ध किया।

सोना चांदी हीरे मोती,
सारे गहनों को त्याग दिया,
कंगन हाथों से उतर गए,
हाथो मे केवल तलवार लिया।

इस धरती पे जन्म लिया,
अब इसका कर्ज चुकाऊंगी,
प्रण करती हूं उनको मारूंगी,
या खुद ही मै मिट जाऊंगी।

हर हर महादेव का नारा,
मुख से गूंज रहा था जी,
अब राजवंश का एक एक बच्चा,
अंग्रेजो की हड्डी भुज रहा था जी।

युद्ध में उन अंग्रेज़ो को,
नारी शक्ति का ज्ञान मिला,
उस नारी के तरफ से इनाम में,
सबको कब्रिस्तान मिला।

जब देखा कि औकात नहीं है,
सम्मुख जाके लड़ने कि,
उस नारी को कौन मार सकता,
जिसने खुद कसम खाई थी मरने में।

फिर पीछे से वार किया,
अपनी औकात दिखा दी जी,
एक घायल सिंहनी पे फिर,
कुत्तों कि फौज भिड़ा दी जी।

स्वर्ग का मार्ग मिला रानी को,
अपनी बलिदानी के बदले,
सारी दुनिया जिसे याद करे,
अमर कहानी के बदले।

वो नारी होकर भी देखो,
ना भागी प्राण गवाने से,
अपना जीवन तक झोंक दिया,
भारत आजाद कराने में।

                      - आदित्य कुमार

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