तेज गधा
गधा एक बड़ा था पागल,
जो मन आता करता था,
कभी यहां तो कभी वहां,
वो उधम मचाए रहता था,
एक दिन एक खेत में जाके,
सारे फसलों को नष्ट किया,
मेहनत किया खराब किसान का,
उसको बहुत था कष्ट दिया,
उस दिन देख के खेत की हालत,
किसान का माथा डोल गया,
लाठी एक निकाली घर से,
गधे के पिछे दौर गया,
भागा गधा जंगल में,
थक किसान वापस चला गया,
इतने में वो मुरख गधा,
गांव का रास्ता भूल गया,
चलत चलत आगे जंगल में,
एक शेर का खाल मिला,
भोजन पूर्ति करने को,
गधे को एक ख्याल मिला,
झट से गधा पहन के खाल,
शेर के रूप में खुद को धाला,
सारे पशुओं ने गधे को,
शेर समझ के राजा माना,
रूप तो बदल लिया गधे ने,
लेकिन बुद्धि इसकी बदले कौन,
आओ आगे देखे,
गधे से भी गधे निकले कौन,
अन्य जाति वालो को देखा,
ढेचू ढेचु करते थे,
गाजर खाते सोते जाते,
खूब मजे में रहते थे,
रहा ना गया गधे से भी,
उसने भी आवाज निकाल दिया,
गधा तो गधा ही होता,
आखिर ये दिखा तत्काल दिया,
गुस्से से सारे पशुओं ने,
गधे को घूर घूर के देखा,
मार मार के उस गधे को,
बदल दिया रूप रेखा,
शिक्षा लेलो इस कविता से,
ज्यादा तेज नहीं बनना,
यदि बने तुम होशियार तो,
तो मूर्खो में होगी गणना।
- आदित्य कुमार