माता कैकई का बलिदान
माता कैकई से प्रभु राम ने,
बचपन में कुछ मांग लिया,
है ये विचित्र बात,
कैकई ने कैसे ये वरदान दिया,
माता मेरे लिए तुझे,
पिताजी से दो वर लेना होगा,
भरत को राजगद्दी दे देना,
मुझे वनवास ही देना होगा।
एक दुष्ट राक्षस ने,
कितने ही पाप किए है यहां,
बेकसूर कितने ही,
निर्दोषों के प्राण लिए है यहां,
उसिको मारने खातिर माता,
मै इश्वर से इन्सान बना,
उसी के वध के खातिर मैया,
मै विष्णु से राम बना।
मईया इस वर के चलते,
शायद सिंदूर तेरा मिट जाएगा,
लेकिन मैया तेरे सिंदूर के बदले,
लाखों का सुहाग बच जाएगा।
माता कैकई ने कहा-
हे राम हृदय पे रख के पत्थर,
तेरे पिता से दो वर मांगूंगी,
भरत को दे दूंगी गद्दी और,
तुझे वनवास दिला दूंगी।
तेरे इस कर्तव्य के चलते,
आज बहुत मजबूर हूं मै,
मेरे सिंदूर से लाखो,
बच जाए तो ये सौदा मंजूर मुझे।
फिर उम्र बढ़ी वो समय आ गया,
कैकई का सिंदूर था उजड़ा,
इतना सब कुछ सहने वाली,
इससे बड़ा बलिदानी है कौन भला।
- आदित्य कुमार