दहेज प्रथा

(दहेज प्रथा पे कविता)

जब बेटी की उम्र बढ़ी,
पिता की बढ़ती चिंता है,
दहेज पूर्ति के खातिर,
जीवन कि पूंजी गिनता है,

गुण रूप पढ़ाई छोड़ो तुम,
पैसे कितने दे सकते हो,
बेटी के खातिर कितना,
गिनने कि क्षमता तुम रखते हो,

बेटा मेरा इंजीनियर है,
कम से कम दस लाख तो लूंगा मै,
और एक कार ना मिले तो आखिर,
बेटा कैसे दे दूंगा मै।

बेटे की वैल्यू बतलाते,
समझो बेटी को भी थोड़ा,
तुम जैसे जैसों ने बेटिवालों को,
कंगाल ही करके है छोड़ा।

मूर्खो बेटा इंजीनियर हो,
पैसों से ही खुश रखता है,
क्या बेटी के जैसे वो,
घर के काम सभी कर सकता है।


लड़के बिकते है पैसों पे,
आखिर उन मे क्या खास है,
जो रखते सोच दहेज की,
उनका सारा जीवन नाश है।

शायद दहेज के चलते,
कुछ लोग बेटी को ना अपनाते है,
लक्ष्मी के जगह उस बेटी को,
सब ना जाने क्या कुछ कह जाते है,

यदि दहेज प्रथा ना त्यागो गे तो,
एक नियम बदल अपनाओ तुम,
अब बेटे वाले दे दहेज,
कुछ ऐसी प्रथा चलाओ तुम।

                               - आदित्य कुमार 

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