मूर्छित हुए लक्ष्मण

जब मेघनाथ के बाणों ने लक्ष्मण को भू पर गिरा दिया,
एक पल को ऐसा लगा कि जैसे भू मंडल को हिला दिया,
हुए लक्ष्मण मूर्छित तब श्री राम कि आंखे भर आई,
 है कौन भला वो जिसके बाणों से मूर्छित हुआ मेरा भाई।

होगा कैसे उपचार लक्ष्मण का ये शुषैन वैद्य ने बतलाया,
बच जाएंगे लक्ष्मण गर कोई जल्दी संजीवनी ले आया,
है किसकी गति तेज़ इतनी सूर्योदय से पहले लाना है,
कोई भी हो जाओ तैयार जल्दी लक्ष्मण को यदि बचाना है,

देख के अपने प्रभु को बेचैन तैयार हुए अंजनी के लाल,
बोले आज ना कोई बीच आएगा चाहे वो हो स्वयं ही काल,
विद्युत कि धारा के जैसे एक पल में हो गए ओझल हनुमान,
बस मन में ये जिज्ञासा थी की कैसे बचाए लक्ष्मण के प्राण,

जितने भी राह में दानव आए सब को मार्ग से हटा दिया,
ना उगना मेरे आने से पहले सूरज को भी ये चेता दिया,
बचपन में ही तुमने मेरा ये विशाल स्वरूप भी देखा है,
जब मुख में मैंने दबा लिया तो काल रूप भी देखा है।

मेरी इन बातो को भले तुम विनती समझो या चेतावनी,
लेकिन उग मत जाना जब तक ले ना आऊं मै संजीवनी,
फिर बढ़े मार्ग में आगे पहुंचे पर्वत राज हिमालय पे,
मै कहां खोजू अब एक बूटी को इतने बड़े महालय पे,

जब कुछ ना आया समझ में तब अपना रूप विशाल किया,
पूरा संजीवनी उठा लिया और हिमालया से प्रस्थान किया,
पहुंचे लंका में महाबली पर्वत को वहीं उतार दिया,
चुन के बूटी फिर शुषैन वैद्य ने लक्ष्मण का उपचार किया।

ठीक हुए लक्ष्मण जी ने फिर मेघनाथ को ललकार दिया,
एक युद्ध दुबारा लड़ा गया और इंद्रजीत का संहार किया।


                                                 - आदित्य कुमार

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