लक्ष्मीबाई की वीरता

जब हम पे कब्जा करने को विदेशियों ने सोच लिया,
जब इस सोने कि चिड़िया के पंख पंख को नोंच लिया,
तब क्यों कोई भी अपनी धरती के खातिर ना बोला,
तब क्यों कुछ देशद्रोही राजाओं का खून नहीं खौला,

तब अत्याचारों को देख आई मां दुर्गा कि अवतारी थी,
वो घोड़े पे ऐसे आती जैसे करती सिंह सवारी थी,
शत्रु को दूर भगाना है ये ठाना था उसने मन में,
ना डरी किसी से ना उसने माना हार कभी जीवन में

 दुष्ट पापी अंग्रेज़ो कि पूरी सेना से ऐसी संग्राम लड़ी,
अंत में लड़ते लड़ते मुल्क के खातिर बलिदान चढ़ी,
आज उस वीरांगना के वीरता की काफी अर्षे बीत गई,
वो लक्ष्मीबाई हार गई पर हार के भी जीत गई।


                                            - आदित्य कुमार

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