मानव का स्वार्थ
स्वार्थ के चलते ये मानव,
सच मे बेहाया हो गया,
चंद से हिस्सों के चलते,
अपना पराया हो गया,
भाई भूला भाई को,
और बेटा भूला बाप को,
भू भाग सब मेरा हुआ,
अब कौन रखेगा आपको,
स्वार्थ यहां तक पहुंच गया कि,
भगवान से भी सौदा करते,
जिसमे हो अपना फायदा इन्हे,
ऐसे ऐसे वादा करते,
गले मिले भाई से तो,
पीठ में है खंजर रखता,
जो भाई भाई का हो ना सका,
वो भला किसी का हो सकता,
जहां फायदा दिखे नहीं,
वहां अपना भी अनजान हुआ,
जो बेटा बाप को भूल गया,
आखिर कैसा इन्सान हुआ,
एक खबर छपी अखबारों में,
बेटा मा बाप का हत्यारा निकला,
भू भाग को था अपना करना,
बस यही वजह सारा निकला,
मानव सबसे बुद्धिमान है,
कहने वाले सबसे मूर्ख,
पशुओं का भी दिन बिगड़ जाए,
जब देखे मानव की सूरत,
एक युग था जहां,
भाई भाई एक रूह थे अलग शरीर में,
मा बाप ही भगवान थे,
चार चांद लगे तकदीर में।
मेरी कविता मे कुछ शब्द,
यदि करवे लगे जड़ा भी हो,
तो क्षमा करना हे इश्वर लेकिन,
ऐसे लोग ना कभी धरा पे हो।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"