भेड़िया आया भेड़िया आया
एक गांव में एक था लड़का,
भेड़ चराया करता था,
झूठ बोलने मे मजा था आता,
झूठ सभी से कहता था,
इधर की बातें उधर था करता,
दो लोगों को लड़ाया करता था,
यदि जो पकड़ा जाता तो खुद को,
मासूम दिखाया करता था,
एक बार वो गया था वन में,
भेड़ों को घास खिलाने को,
मन में फिर खुराफात सूझा,
लोगों को झूठ बताने को,
मुझे बचाओ मुझे बचाओ,
जोड़ जोड़ से चिल्लाया,
भेड़ मेरे है संकट में,
देखो देखो भेड़िया आया,
गांव वाले सब दौड़े दौड़े,
आए उसे बचाने को,
लड़का है चीख रहा डर के,
भेड़िए को दूर भगाने को,
पर जैसे ही गांव वाले,
लड़के के पास में दौड़े आए,
बोलो कहां भेड़िया भागा,
जल्दी से उसे दूर भगाए,
किन्तु हंसते हंसते लड़का,
बोला मै मजाक कर रहा था,
कोई भी भेड़िया नहीं है,
मै ऐसे ही झूठ कह रहा था,
गुस्सा कर के गांव वाले,
निकले अपने घर की ओर,
पर आगे बढ़े ज्यों ही मार्ग में,
फिर आया लड़के का शोर,
फिर से चीख चीख के बोला,
गांव वालों आओ आओ,
भेड़िया आया भेड़िया आया,
जल्दी आके मुझे बचाओ,
फिर से दौड़े गांव वाले,
पहुंचे जब लड़के के पास,
हंसा दुबारा झूठा लड़का,
खोया गांव वालों का विश्वास,
फिर से निकले गांव वाले,
लड़के पे सब गुस्से से लाल,
यदि दुबारा चीखा वो तो,
खींच लेंगे उसका खाल,
पर इस बार एक काला भेड़िया,
सच मे आया लड़के के पास,
अपना भेड़ बचाने को,
उसने किया बहुत प्रयास,
चीखा लाखों बार परंतु,
इस बार कोई भी ना आया,
भेड़िए ने उसके सब भेड़ों,
खूब स्वाद लेके खाया,
पेड़ पे चढ़ के वो लड़का,
बस देख रहा था वो मंजर,
उसके अपने बुरे चाल ने,
भोंका उसके पीछे खंजर,
बच्चो कान खोल के सुन लो,
झूठ कभी भी ना कहना,
बर्बाद है कर देता ये झूठ,
ये झूठ है पापों का गहना।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"