रोटी का मसला

घर से निकला खुशी खुशी,
करने पैसों का इंतजाम,
पर वो क्या जाने आज के दिन,
मृत्यु है कर रही इंतजार,

घर पे सब को बोल के आया,
आज मै देर से आऊंगा,
पैसे अधिक कमाने को,
थोड़ा अधिक सवारी उठाऊंगा,

रिक्शे को चूम के बैठ गया,
पैर चल रहे बिना थके,
पैसे अधिक कमाने को,
मेहनत करना है बिना रुके,

थोड़े पैसे का मसला था,
दो रोटी के खातिर निकल पड़े,
बाहर मे शीतलहर काफी,
फिर भी ले रिक्सा निकल पड़े,

कर रहा सवारी का इंतज़ार,
कुछ पैसे अधिक बनाने थे,
मेहनत थोड़ा करना था और,
भले देर से ही घर जाने थे,

पर शायद थोड़ी देर नहीं,
अब लौट के घर जाना ना था,
वहीं सूरधाम की इक्षा थी,
अब लौट के घर आना ना था।

सब मसला खत्म हो गया जी,
मृत्यु को इनपे आ गया तरस,
झट से इनको अपनाया मृत्यु ने,
सब कठिनाई हो गई सरस।

                               - अदित्य कुमार
                                   "बाल कवि"

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