दारु छोड़ो
गली मोहल्ला छुप छुप करते,
शराब का पान,
मन में दारू बसा हुआ है,
मुख पे है हरी का नाम,
दारू का ऐसा चस्का है,
छूटने का नाम नहीं लेता,
अनमोल जिंदगी तेरी है,
वो एक एक कर दाम है ले लेता,
एक अकेला दारू परिवार भी,
नाश है कर देता,
धीरे धीरे सारे खुशियों का,
विनाश है कर देता,
सड़कों पर बेमौत मरोगे,
कोई ना पूछने आएगा,
रात के अंधेरे में तुमको,
कुत्ता नोच नोच के खायेगा,
तब पछताओगे दारू पे,
क्यों ना मैंने छोड़ दिया,
आज इसी दारू ने मेरा,
जीवन से नाता तोड दिया,
औरत इंतजार करती तुम,
आते नशे में लड़खड़ाते,
पता चला किसी गाड़ी के नीचे,
आके तुम जो मर हो जाते,
परिवार बिखर जाएगा तेरा,
एक दारू के चलते,
बेमौत तू भी मर जाएगा,
एक दारू के चलते,
तुमको खुद को बदलना,
ये काम नहीं सरकार का,
अब भी ना सुधरे तो प्यारे,
बन नाशक परिवार का।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"