बेटी या पैसा
आज लिखना है कलम को बेटियों पे एक कथा,
नारी के हत्यारे है दहेज जैसे कुप्रथा,
छोड़ के गुण बेटियों का छोड़ के इनकी पढ़ाई,
रूप भी बेटी का छोड़ा बात पैसों पे है आई,
सबसे पहले चार चक्का फिर नगद की बात है,
पैसों के भूखे है ये सब शायद ना मानव जात है,
इनके हर रग रग में पैसा खून पैसा जान पैसा,
ना यदि पैसा तुम्हे तो ये कहे पहचान कैसा,
लक्ष्मी ले जाने खातिर ये किराया लेते है,
बेटी को खटवाने खातिर ये किराया लेते हैं,
मै ना समझा आखिर ये पैसा लेते है किस बात का,
पैसों का भूखा है जो भी शायद ना मानव जात का,
बाप उस बेटी का अपने खून तक है बेचता,
आखिर नगद कैसे मै दूं इतना ही है वो सोचता,
जो भी पैसे के खातिर इन्सानियत को भूलता,
सदमे से बेचैन बूढ़ा बाप पंखे से है झूलता,
इतना भी क्यों गिर रहे एक दिन इश्वर भी तुम्हे ठुकराएगा,
बेटी के दहेज की चिंता में कोई बेमौत ही मर जाएगा,
पुरखो के द्वारा चल रहा आखिर है ये प्रथा कैसा,
अब आप तय कर लो की बेटी चाहिए या फिर पैसा।।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"