निकल चलो

आगे बढ़ बढ़ते ही जा,
छोटा से छोटा प्रयास,
करते जा तू प्रयास सदा,
लाए तुझको मंजिल के पास,

मानव है तू भूल रहा क्यों,
करते जा हरदम प्रयास,
इतनी शक्ति रख खुदमे,
तू एक करे धरती आकाश,

सोना जितना गर्म है होता,
इतना महंगा बिकता है,
जितना हीरा सहता प्रहार,
उतना ही सुन्दर दिखता है,

एक करो नभ और पाताल,
क्या रोकेगी मायाजाल,
आगे बढ़ ना डर ओ राही,
बन जा तू मृत्यु का काल,

कूड़े मे भी गंध मिला दे,
फूल सा गंध बनेगा क्या,
जीना है तो लड़ना होगा,
परिस्थिति से जंग करेगा क्या,

हां मे उत्तर है यदि तुम्हारा,
बिन चिंता के निकल चलो,
प्रयास करो करके देखो,
और राह में अपने निकल पड़ो।।

                     - अदित्य कुमार
                          "बाल कवि"


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