नशा-- एक अनजान दलदल
एक दलदल अनजाना है,
क्यों ना कोई पहचान रहे,
सेवन करते खूब मजे से,
जैसे कर अमृत पान रहे,
इसको अपनाने का तुमको,
देखो कैसा इनाम मिला,
अपना सब कुछ नाश हुआ,
और दारु बाज़ का नाम मिला,
ना इधर के हो, ना उधर के हो,
परिवार दारु ने नाश किया,
अपनों से बिछड़ रहे हो तुम,
क्या तुमने कभी एहसास किया,
खोखला तुम्हे ये करता है,
भीतर ही भीतर मार रहा,
सबसे तुम अलग हो गए हो,
देखो आखिर परिवार कहां,
देश की पीढ़ी धीरे धीरे,
इस दलदल मे डूब रही,
किस काल को ये न्योता देते,
ये भी इनको महसूस नहीं,
बीड़ी, सिगरेट, दारु, तम्बाकू,
एक मौत के नाम अलग,
क्या नुकसान करेगा ये,
महसूस करो बस एक झलक,
पहले ये कमज़ोर करेगा तुम्हे,
फिर काफी ये तड़पाएगा,
देह कंकाल सा होगा और,
बिन मौत ही मर जाएगा,
आने वाली पीढ़ी जब,
तुमसे सवाल यू पूछेगी,
जब नशा से हुई नुकसान के खातिर,
उत्तर तुमसे खोजेगी,
तब कुछ भी ना कह पाओगे,
बस बेबस से रह जाओगे,
अंतरात्मा तुम्हे कचोटेगी,
जब मन ही मन पछताओगे,
हिंद देश कि रीढ़ हो तुम,
यदि कमज़ोर हो जाओगे,
देश को खोखला करके आखिर,
कैसे देश भक्त कहलाओगे,
वक्त अभी है सुधर जाओ,
यदि खुद को और देश बचाना है,
नशा छोड़ परिवार अपनाओ,
यदि देश भक्त कहलाना है।।
- आदित्य कुमार
"बाल कवि"