ऐसे ऐसे- एक नया बहाना

आया मोहन पूछे पिताजी,
आखिर क्यों तू रोता है,
बोला मोहन पिताजी पेट में,
"ऐसे ऐसे" होता है,

पिताजी चिंतित हुए,
उन्हे "ऐसे ऐसे" कुछ समझ ना आए,
आखिर मोहन को हुआ है किया,
सारे परिजन थे यूं घबराए,

जल्दी से सबने फोन लगाया,
घर पे सबने वैद्य बुलाए,
ये "ऐसे ऐसे" आखिर हैं क्या,
वैद्य को भी ये समझ ना आए,

"ऐसे ऐसे" आखिर है क्या,
आग की तरह फ़ैल गई बात,
गांव मोहल्ला सब थे डर गए,
आखिर कैसे करता आघात,

मुखिया आए, पंच जी आए,
शहर से खुद डॉक्टर भी आए,
आखिर "ऐसे ऐसे" क्या है,
ये कोई भी समझ ना पाए,

मास्टर साहब आए अंत में,
मोहन की हालत देखी,
कानो मे मोहन के कुछ बोला,
बस एका एक हालत सुधरी,

सब ने पूछा मास्टर जी,
आखिर क्या बोला कानो में,
मोहन जो स्वस्थ हुआ आखिर,
जान आई सब के जानों मे,

कहा गुरु ने बात नहीं कुछ,
इसकी बीमारी मै समझ गया,
कल से विद्यालय है खुलना,
इसने ना गृहकार्य है किया,

बस इसी के कारण मोहन ने,
नई बीमारी का निर्माण किया,
मैंने बस इसको गृहकार्य के खातिर,
दो दिन का अवसर प्रदान किया,

इतना सुनते ही पहले सब,
गुस्से से देखे मोहन को,
फिर जोड़ की हस्सी सबने की,
शांति मिली सबके मन को।

                         - अदित्य कुमार
                             "बाल कवि"



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