आदत

एक बार एक मुनिवर,
गंगा में चले नहाने को,
कीचड़ था थोड़ा लगा देह में,
देह को शुद्ध बनाने को,

देखा वहां एक व्यक्ति था,
सबके ऊपर थूक रहा,
मार सभी से खाता था,
पर फिर भी ना था चुंक रहा,

ऋषिवर को भी देख के,
उसने थूक दिया उनके ऊपर,
ऋषिवर ने खुद को शुद्ध किया,
जाके गंगा मा को छूकर,

फिर से आए नहा दुबारा,
वहीं काम फिर किया इसबार,
मुनीवर जितनी बार नहाते,
थूकता वो भी उतनी बार,

मै भी उस वक्त था खड़ा बगल,
मैंने गुरूवर से पूछा जाके पास,
वो थूक रहा आप नहा रहे,
ये बात मुझे लगती है खास,

गुरुवर ने मुझको बोला,
थोड़ी देर बस रुक जाओ,
देखो आगे क्या होगा और,
तब तक देख मजा पाओ,

थोड़ी देर के बाद में देखा,
वो दुष्ट युवक था झुका हुआ,
गुरुवर के चरणों में वो था,
आदत था उसका रुका हुआ,

जब गया वो व्यक्ति मैंने पूछा,
आखिर किया आपने है क्या,
जो लोगो के मार से ना सुधरा,
वो आप से कैसे सुधर गया,

और आपने क्यों ना मारा उसको,
बार बार क्यों नहा रहे,
वो थूक रहा फिर भी आप क्यों,
पास थे उसके जा रहे,

बोले गुरुवर जब वो व्यक्ति,
बुरी आदत ना छोड़ रहा,
फिर मै क्यों अच्छा आदत छोड़ूं,
वो लाख मर्यादा तोड़ रहा,

इसीलिए ये याद रखो,
ना बुरी आदत अपनाएंगे,
जो हमें चाहेगा बुरा बनाना,
उसे ही अच्छा बनाएंगे।

                       - अदित्य कुमार
                          "बाल कवि"






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