कछुए का क्रोध
एक बार एक तालाब में,
बगुला कछुआ मित्र बने,
प्रेम बड़ा तीनों के बीच था,
प्रेम के तीनों चित्र बने,
लेकिन एक दिन उस जंगल में,
प्रकृति ने क्रोध दिखाया था,
बरसात बंद हुई कई दिन तक,
तालाब को भी सुखाया था,
तब तीनों ने फैसला किया,
एक अन्य तालाब मे जाने का
बिन पानी जीवन ना होता,
एक जीवन नया बनाने का,
लेकिन एक परेशानी थी,
तालाब था वहां से काफी दूर,
मित्र को कैसे छोड़े बगुला,
तीनों थे काफी मजबूर,
अंत में एक बगुले ने बोला,
एक मोटा डंडा लाओ जी,
कछुआ मुंह से पकड़ेगा उसे,
जड़ा इसकी भी जान बचाओ जी,
डंडा लाया गया कछुए ने,
डंडे को मुंह से पकड़ लिया,
ना छूटे मार्ग में डंडा इस खातिर,
दांतो से जकड़ लिया,
बगुलों ने उसे कहा कछुए,
मुंह ढीला अपना ना करना,
यदि जो मुंह थोड़ा भी खुला तो,
पड़ेगा तुम्हे बेमौत मरना,
लाख तुम्हे मार्ग में लोग,
कछुए प्यारे उकसाएंगे,
तुम ना आपा खोना अपना,
वो कितना ही बुरा बताएंगे।
कछुए ने दोनों बगुलों को,
चुप रहने का विश्वास दिलाया,
ना मै कुछ भी बोलूंगा मित्रो,
उसने दोनों को ये बतलाया,
यात्रा हुई प्रारंभ तीनों की,
गांव से होके उड़ना था,
पर शायद इसी गांव में,
कछुए को बेमौत ही मरना था,
कुछ पाखंडी और निकम्मे,
जुए के अड्डे पे बैठे थे,
जो भी उनको दिखता था,
वो उनको जो मन था कहते थे,
बोले वो ये कछुआ शायद,
मरा हुआ दिखता है जी,
या मजबूर है ये कछुआ बगुलों से,
ड़रा हुआ दिखता है जी,
इस प्रकार उन कामचोरों ने,
अलग अलग बातें बोली,
कछुए से रहा न गया ये सुनके,
उसने भी अपनी मुंह खोली,
कछुआ भूल गया बगुलों ने,
उसको कुछ समझाया था,
भूल के भी कुछ ना कहना,
पहले ही उसे चेताया था,
कछुआ भूला बातों को,
अब देखे क्या होगा उसके साथ,
सीधे ही मर जाएगा या टूटेंगे,
उसके पैर हाथ,
कछुआ गिरा धड़ाम से,
उसके हड्डी पसली टूट गए,
पर बच गया मौत से शायद,
यम राज थे उससे रूठ गए,
पर कछुआ अब ये समझ गया,
क्रोध को काबू में रखना,
यदि ना आपा काबू में है तो,
मुसीबत का स्वाद पड़े चखना।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"