अधूरा ज्ञान
एक बार एक गुरुकुल में,
कुछ मूरख बुद्धिमान मिले,
ज्ञान तो पूरा मिल गया गुरु से,
पर उपयोग से वो अनजान मिले,
आधा ज्ञान मिला तो वो,
खुशी से फूले नहीं समाए,
मौके की तलाश में वो थे,
कहां वो अपना ज्ञान दिखाए।
कहा गुरु ने हे शिष्यों,
तुमने शिक्षा तो पाया है,
पर उपयोग समझ के करना,
तुमपे कहर आज ढाया है,
पर चारों मस्ती में गुल,
आखिर घर अब जो जाना था,
बस यही थे चारो सोच रहे,
अब खूब दबा के खाना था,
बढ़े वो चारो इस बात से दूर,
की गुरु ने कुछ समझाया था,
आखिर बिना किसी सुर ताल,
के गीत उन्होंने गाया था,
पथ पे चले आगे था जंगल,
जंगल में एक ढांचा था पड़ा,
ढांचे को देख के लगता था,
जैसा कोई भूखा सिंह मरा,
उनमें से एक मूर्ख बोला,
चलो भाई इसे जीवन देते है,
एक पशु को यदि बचाते है तो,
पुण्य भी थोड़ा लेते है,
एक मूर्ख बोला ठीक है चलो,
विद्या का कुछ इस्तेमाल करे,
कुछ हम भी कर दिखलाते है,
चलो मिलके कुछ कमाल करे,
फिर चारो अपनी शक्ति से,
शेर को लगे उठाने में,
प्रकृति ने जिसका जीवन छीना,
उसको लगे बचाने में,
चारों ने अपनी शक्ति से,
उस शेर को जीवन दान दिया,
उठते ही भूखे शेर ने पहले,
चारों का कल्याण किया,
भूखे शेर ने चारों को,
यमलोक का मार्ग दिखा दिया,
ना कभी अधूरा ज्ञान से मिलना,
सिख ये भारी सीखा दिया।
इसलिए कहते है बच्चो,
ज्ञान हमेशा पूरा लेना,
यदि अधूरा ज्ञान है तो फिर,
काम है उसका मृत्यु देना।
- अदित्य कुमार
"बाल कवि"