इन्सान कैसा

एक बार एक नन्हे बालक ने,
अपनी मईया से पूछा,
मा इन्सान किसे कहते है,
मुझे जरा तू समझा,

बोली मा ओ मेरे मुन्ने,
आखिर क्यों पूछ रहा ये तू,
तू भी तो एक इन्सान ही है,
आखिर क्या भूल गया ये तू,

बोला मुन्ना मा मुझको,
धरती पे जीवन जीना है,
इन्सान को पहले जान तो लू,
इन्सान मुझे जो बनना है,

बोली मईया तो सुन बेटा,
इन्सान किसे कहते है,
ये उनको ही डसते पहले,
जिनके घर में रहते है,

पैसा इनका जीवन है,
पैसों के खातिर जीते है,
यदि स्वार्थ कहीं दिखता है,
तो किसी का भी खून ये पीते है,

जन्म दिया जिस मा ने,
ये तो उस मा के भी हो ना सके,
उस बाप के भी दुश्मन बन गए,
जो हर मुश्किल से इन्हे बचाए रखे,

भाई के हत्यारे बनके ये,
उसके धन पे मौज उड़ाते,
देख बेटा कलयुग ये ही,
इन्सान कहलाते है,

अब सोच ले तू इस कलयुग मे,
इन्सान बनेगा कैसा तू,
बोला मुन्ना मेरी मैया रहने दे,
ठीक हूं जैसा हूं,

छल कपट से दूर रहूंगा मै,
बेईमानी से दूर रहूंगा मै,
इस धरती को बदल जो देगा मा,
ऐसा इन्सान बनूंगा मै।।

                    - आदित्य कुमार
                         "बाल कवि"


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